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गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

मेरा खुदा-मेरा दीवाना

बुझ गये चिराग
अब खुद को जलाना होगा,
पा ही लेगे उस खुदा को, पहले खुद को मिटाना होगा……
मै उसको क्या कहू जो मुझसे खफा हो गया है,
गलती उसकी ही थी पर मुझको मनाना होगा……….
मेरा खुदा भी मेरे महबूब जैसा संगदिल है,
हाथों में खंजर है और मेरा दिल ही निशाना होगा ……….
उसने भी कह दिया की वो मजबूर है बहुत,
उसकी बेवफाई को अब ज़माने से छुपाना होगा…………
मुझको रुलाने के वो क्या क्या बहाने ढूढता है
मेरा खुदा भी मेरा ही दीवाना होगा…….
नहीं है इंतज़ार दिले बेताब को किसी का अब
“रौशनी” ये कारवां जहाँ से तनहा ही रवाना होगा………

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