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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

अक्सर वो पूछता है

अक्सर वो पूछता है,
उससे मुझे प्यार है कितना???
मै कहती हूँ तुझको ऐतबार है जितना !
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वो पूछता है,
साथ निभाओगी कितनी दूर,
मै कहती हूँ जब तक खुदा को दिल में मेरे धड़कन है मंजूर !
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फिर कभी कहता है,
क्या मै हूँ तेरे काबिल,
मै कहती हूँ मेरी हर इबादत का तू ही है हांसिल !
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फिर कहता है,
की मुझसे कभी रुठोगी तो नहीं
मै कहती हूँ रूठी तो फिर मानूँगी ना कभी
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वो कहता है,
के मना लूँगा मैं हँसकर इक पल मै,
मै कहती हूँ तू ऐसा ही रहना मेरे आज और कल मैं !
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फिर उदास होकर कहता है,
कभी दूर जाओगी तो नहीं,
मै कहती हूँ मर भी गयी तो रहूँगी यादों में तेरी !
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वह अक्सर यों सवाल करके रोता है और रुला देता है बार बार
सच ही है दीवाना बना देता है ये प्यार
अक्सर वो पूछता है …..अक्सर वो पूछता है….

शनिवार, 1 जनवरी 2011

लिबास

अचानक से कभी तू सामने आ और दिल को धड़का दे,
मेरी गमगीन आँखों को ख़ुशी के अश्कों से नहला दे….
मेरे कहने से तू आत्ता है मुलाकात के लिए,
कभी खुद मुझसे मिलने आ के, तू मुझको चौका दे …..
तेरी ऑंखें बयाँ करती है राज कई गहरे,
लबो को खोल और राज को लफ़्ज़ों के लिबास पहना दे …..
तू परेशान जो हो तो मेरे दो जहान बेचैन रहते है,
रूह सकून पाती है जो तू खुल के मुस्कुरा दे…..
कभी जुगनू कभी तारा कभी तू चाँद बन जाता है,
किसी सवेरे तू सूरज की पहली किरण बन के मुझको  जगा दे…….

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

रुक जाओ तुम न जाओ

कुछ लफ्ज़ नए कह दो ,
कुछ भी न छिपाओ ,
जो किसी ने न कहा हो ,
जो किसी ने न सुना हो ,
ऐसा कुछ कहे हम , तुम ऐसा कुछ सुनाओ ……………..
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आँखों में कैद अश्को को ,
बहने का मिले रस्ता,
तुम जखम नए देकर , मुझे आज फिर रुलाओ
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मै चाहती हु मुझसे ,
कोई वादा न करो तुम ,
और कहे बिना ही , सब वादों को निबाओ………
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तुम चले जाते हो और ,
मै रोक भी नहीं पाती ,
ख़ामोशी देती है आवाजे , रुक जाओ तुम न जाओ …………..
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मेरे साथ चलना उम्र भर,
मेरा हाथ पकडे रहना,
कोई गिला हो गर तो, मुझसे तुम कहना,
मुझे दिल मे अपने रखोगे, तुम मेरी कसम खाओ…………….

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

मै उड़ना चाहती हूँ

udan मै उड़ना चाहती हूँ सच में हमेशा मेरा मन करता है की उड़ कर कही        दूर निकल जाऊ, आकाश की ऊँचाइयों को छु लू , बादलों के बीच जाकर देखू क्या है इनमे जो ये उड़ते फिरते है.. देखू तो सही ये हवा आती कहा से है, और जिस भगवन के लिए हम लड़ते है उसका घर भी तो कहते है न ऊपर ही कही है उसको भगवन को भी मिलकर आती ... हाँ हाँ जानती हूँ की इस बारे में साइंस अपने सिद्वांत दे देगी मगर मुझे सिद्वांत नहीं चहिये... मुझे तो खुद इन्हें महसूस करना है ... उड़ना है बहतु दूर तक..... आप मेरी इस उडान को अब नारी की तरक्की से मत जोडियेगा ... कोई कितनी भी तरक्की कर ले रहेगा तो जमीन पर ही न ...... असमान तो छु न पायेगा .. तारों के बीच जाकर टिमटिमा तो न पायेगा ....... काश कोई मुझे अपने पंख दे दे ताकि मै इन सब अहसासों को महसूस कर सकू .. जी सकू जिन्दगी का सबसे खुबसूरत पल... मुझे लगता है की हर नारी जीवन में एक बार जरुर उड़ना चाहती है ... आखिर चिड़ियाँ और गुड़ियाँ एक जैसी तो होती है ... मामी यु भी तो कहती है की तुम मेरी चिड़िया... मगर काश की इस चिड़िया के भी पंख होते ........जब मेरा दिल करता मै फुर फुर उड़ कर कभी एक पेड़ की डाली पर बैठती और कभी दूसरी पर ... जब मन उदास होता तो एक लम्बी उडान पर निकल जाती...हवा के साथ साथ बहती और रात को चाँद जिसे में रोज़ धरती से देखती हूँ उसके पास जाती और पूछती क्यों चाँद इतना सुन्दर होते हुए भी तू अकेला सा क्यों दीखता है ? क्या तेरा दिल नहीं करता धरती पे आने का ?मगर में जानती हूँ वह कहेगा नहीं धरती पे आने से अच्छा में गायब ही हो जाऊ .. अगर मै उड़ पाती तो मामी को भी चिंता न होती की मेरी बेटी कहाँ गयी कब आयेगी .. मेरे जीवन में मेरे सबसे अच्छे दोस्त होते ये पंछी जिनके साथ दिन भर रहती अपने सुख-दुःख कहती और उनके सुनती... काश की मै उड़ सकती ... मेरा मन उड़ना चाहता है .. मगर जानती हूँ कोई मुझे पंख न देगा, कोई उड़ने भी न देगा... शायद जीवन में आकर एक बार ही उड़ना संभव होता है इस जिस्म को छोड़कर.. जब रूह दूर तक उड़ जाती है हर असमान को पार करती हुई...... इंसान होना भी कितनी बड़ी मज़बूरी है...... चलिए कभी तो ये सपना पूरा होगा की इंसान होते हुए भी उड़ सकू .. कहते है न की उम्मीद पे दुनिया कायम है ........... मगर अगर आप का भी उड़ने का मन करते है या आपको पता है की कैसे उड़ा जाता है जरुर बताइयेगा .....
http://roshni.jagranjunction.com/

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कुछ कमी सी है

सब खामोश है
दिल की धड़कन, सांसो की सरगम….
बस तन्हाई है
न कोई हमसाया, न हमदम….
कुछ कमी सी है
होंठो पे हंसी और है ऑंखें नम….
आसमान सूना है
चाँद भी छुप गया, और तारे है कम…..
ढूढती है नज़रे
तुझ को या खुद को हर जनम…
मेरे दामन में है
कुछ हंसी यादें और कुछ गम……..
रौशनी मद्धम सी है
बुझ गया सूरज, आ भी जाओ कहा खो गए हो तुम

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

उदास शाम



जाने कैसे सुबह से शाम हो गई,
ये जिन्दगी बस यु ही तमाम हो गई ………
करते रहे हम कोशिशे मंजिल को पाने की ,
हर कोशिश लेकिन आज तो नाकाम हो गई …..
मन के किसी कोने में छुपाया था आपको ,
फिर उल्त्फत मेरी कैसे बदनाम हो गई ……….
जिस खुशी के लिए उठाया था हर एक ग़म ,
वो खुशी आज मुझसे अनजान हो गयी ……..
ये जिन्दगी बस यु ही तमाम हो गयी ………
मेरा वजूद हस्ती मेरी बेनाम हो गयी ……..
जाने कैसे सुबह से शाम हो गयी 

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

मेरा खुदा-मेरा दीवाना

बुझ गये चिराग
अब खुद को जलाना होगा,
पा ही लेगे उस खुदा को, पहले खुद को मिटाना होगा……
मै उसको क्या कहू जो मुझसे खफा हो गया है,
गलती उसकी ही थी पर मुझको मनाना होगा……….
मेरा खुदा भी मेरे महबूब जैसा संगदिल है,
हाथों में खंजर है और मेरा दिल ही निशाना होगा ……….
उसने भी कह दिया की वो मजबूर है बहुत,
उसकी बेवफाई को अब ज़माने से छुपाना होगा…………
मुझको रुलाने के वो क्या क्या बहाने ढूढता है
मेरा खुदा भी मेरा ही दीवाना होगा…….
नहीं है इंतज़ार दिले बेताब को किसी का अब
“रौशनी” ये कारवां जहाँ से तनहा ही रवाना होगा………