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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

उदास शाम



जाने कैसे सुबह से शाम हो गई,
ये जिन्दगी बस यु ही तमाम हो गई ………
करते रहे हम कोशिशे मंजिल को पाने की ,
हर कोशिश लेकिन आज तो नाकाम हो गई …..
मन के किसी कोने में छुपाया था आपको ,
फिर उल्त्फत मेरी कैसे बदनाम हो गई ……….
जिस खुशी के लिए उठाया था हर एक ग़म ,
वो खुशी आज मुझसे अनजान हो गयी ……..
ये जिन्दगी बस यु ही तमाम हो गयी ………
मेरा वजूद हस्ती मेरी बेनाम हो गयी ……..
जाने कैसे सुबह से शाम हो गयी 

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