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रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कुछ कमी सी है

सब खामोश है
दिल की धड़कन, सांसो की सरगम….
बस तन्हाई है
न कोई हमसाया, न हमदम….
कुछ कमी सी है
होंठो पे हंसी और है ऑंखें नम….
आसमान सूना है
चाँद भी छुप गया, और तारे है कम…..
ढूढती है नज़रे
तुझ को या खुद को हर जनम…
मेरे दामन में है
कुछ हंसी यादें और कुछ गम……..
रौशनी मद्धम सी है
बुझ गया सूरज, आ भी जाओ कहा खो गए हो तुम

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सम्भावनाएँ हैं आपके अंदर... अच्छे बिम्ब! एक सुझाव, कृपया ख़ुद को बस इसी उदासी, विरह और वेदना के कवच में मत बंद रखियेगा.. कविता को विस्तार दें, भावनाओं का विस्तार आवश्यक है!!

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  2. सलिल वर्मा जी आपका सुझाव मेरे लिए मूल्यवान है .. और आपके द्वारा दिए गये विचार और पहला कमेन्ट पाकर बहुत ख़ुशी हुई... धन्यवाद

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